सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध का अंतिम दिन होता है। शास्त्रों में आश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मोक्षदायिनी अमावस्या कहा गया है। अमावस्या के दिन किए जाने वाले श्राद्ध का विशेष महत्व है। इस दिन पितृ पक्ष के दौरान होने वाली भूल-चूक के लिए क्षमा याचना की जाती है।
मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मृत्यु लोक से आए हुए पितृजन वापस लौट जाते हैं। समस्त पितरों का इस अमावस्या पर श्राद्ध किए जाने के कारण इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है।
इस अमावस्या पर सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का श्राद्ध किया जाता है। माना जाता है कि महालया में मां दुर्गा ने असुरों का नाश किया था। यह भी मान्यता है कि इस दिन मां पार्वती कैलाश से अपने पुत्रों श्रीगणेश और कार्तिकेय से मिलने आती हैं। माना जाता है कि पितर किसी भी रूप में घर आ सकते हैं। इसलिए भूलकर भी घर पर आने वाले किसी भी जीव का निरादर न करें।
ऐसे पूर्वज जिनकी मृत्यु की तारीख याद नहीं होती या फिर उनका श्राद्ध करना भूल जाते हैं तो इस दिन भूले बिसरे सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। इस दिन सभी पितरों का स्मरण करना चाहिए। पितरों का जल और तिल से तर्पण करना चाहिए। पितरों की स्मृति में पौधारोपण करें।
पितरों की पसंद का भोजन बनाकर पांच स्थानों में निकालना चाहिए। पहला हिस्सा गाय का, दूसरा देवों का, तीसरा हिस्सा कौए, चौथा हिस्सा कुत्ते और पांचवां चींटियों का होता है। जल का तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है। इस अमावस्या पर श्राद्ध करने से पितरों को संतुष्टि प्राप्त होती है, साथ ही घर में सुख-समृद्धि आती है।
इस विधि से करें पितरों का तर्पण
सर्वपितृ अमावस्या अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर बिना साबुन लगाए स्नान करें और फिर साफ-सुथरे कपड़े पहनें। स्नानादि के पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें। पितरों से मंगल कामना करें। सामर्थ्य के अनुसार दान करें। अगर पितर का नाम ज्ञात न हो तो भगवान का नाम लेकर तर्पण विधि करें। पितरों के तर्पण के निमित्त सात्विक पकवान बनाएं और उनका श्राद्ध करें। शाम के समय सरसों के तेल के चार दीपक जलाएं। इन्हें घर की चौखट पर रख दें।
पितरों से करें अपने सुखी जीवन की कामना
एक दीपक लें। एक लोटे में जल लें। अब अपने पितरों को याद करें और उनसे यह प्रार्थना करें कि पितृपक्ष समाप्त हो गया है इसलिए वह परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद देकर अपने लोक में वापस चले जाएं। यह करने के पश्चात जल से भरा लोटा और दीपक को लेकर पीपल की पूजा करने जाएं। वहां भगवान विष्णु जी का स्मरण कर पेड़ के नीचे दीपक रखें जल चढ़ाते हुए पितरों के आशीर्वाद की कामना करें। पितृ विसर्जन विधि के दौरान किसी से भी बात ना करें।
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वैसे भी हिन्दू धर्म में पितरों के लिए अमावस्या का काफी महत्व है। क्योंकि पूरे साल अमावस्या के दिन अगर ये 7 उपाय किए जाएं तो हमें मातृ और पितृ दोनों ऋण से मुक्ति भी मिल सकती है।
आइए विस्तार से जानें इन 7 उपायों के बारे में-
1) अमावस्या के दिन स्नान करने के बाद गंगाजल मिले हुए जल को एक स्टील के लोटे में लेकर और उस जल में काला तिल डालकर 3 बार ‘ॐ सर्वपितृ देवाय नमः’ मंत्र का उच्चारण करते हुए दक्षिण की तरफ मुख करके तर्पण करना चाहिए।
2) अगर सोमवती अमावस्या, भौमवती अमवस्या, और शनैश्चरी अमावस्या को सुबह पूड़ी और खीर, आलू की सब्जी, बेसन के लड्डू, केला और दक्षिणा के साथ सफ़ेद वस्त्र किसी ब्राह्मण को दान करने से हमारे पितृ खुश होते हैं और हमें सभी दोषों से मुक्ति भी दिलाते हैं।
3) सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा आक के 21 पुष्पों, कच्ची लस्सी और बेलपत्र के साथ करने से भी पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
4) किसी गरीब कन्या की शादी में मदद करने से भी पितृ दोष में राहत मिलती है।
5) रवि वासरी अमावस्या के दिन तर्पण के साथ ही साथ ब्राह्मणों को भोजन कराने और दक्षिणा के साथ लाल वस्तुओं का दान करने से भी पितृ दोष की शांति में मदद मिलती है।
6) हर अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, काला तिल, आदि, ‘ॐ पितृभ्यः नमः’ का 3 बार उच्चारण करते हुए चढ़ाने पर भी शांति मिलती है।
7) इसके अलावा सर्प पूजा, गोदान, पीपल और बरगद के पेड़ लगवाना, विष्णु मन्त्रों का जाप करने और श्रीमद्भागवद गीता का पाठ आदि करने से भी पितृदोष की शांति होती है।
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