
भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीराधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन बरसाने की लाडली श्रीराधा जी का जन्म हुआ था। पूरे बरसाने में इस दिन उत्सव का माहौल होता है। यहां श्रीराधा रानी की कृपा हमेशा बरसती रहती है। श्रीराधा नाम की महिमा अपरंपार है। मान्यता है कि जिस किसी के मुख से राधा नाम का जाप होता है भगवान श्रीकृष्ण उसके पीछे-पीछे चल देते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का नाम जब भी लिया जाता है तो ऐसा कभी नहीं होता कि राधा जी का नाम ना लिया जाए। श्रीकृष्ण को आम भक्त राधे-कृष्ण कहकर ही पुकारते हैं। ये दो नाम एक दूसरे से हमेशा के लिए जुड़ गए हैं। राधा रानी के बिना कृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि राधाष्टमी के व्रत के बिना कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त नहीं मिलता है। राधा अष्टमी के दिन राधा और कृष्ण दोनों की पूजा की जाती है।
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श्रीराधा जी को बरसाना के लोग वृषभानु दुलारी भी कहते हैं। राधाजी के पिता का नाम वृषभानु और उनकी माताजी का नाम कीर्ति था। बरसाने में पहाड़ी पर बना श्रीराधाजी का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर लाल और पीले पत्थर का बना हुआ है। श्री राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य मंदिर का निर्माण राजा वीरसिंह ने 1675 ई. में कराया था। श्रीराधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है।
राधा अष्टमी के दिन मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। श्रीराधाजी को छप्पन व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इस भोग को सबसे पहले मोर को खिलाया जाता है। मोर को श्रीराधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। श्रीराधा-कृष्ण जहां पहली बार मिले थे, उसे संकेत तीर्थ कहा जाता है। यह तीर्थ नंदगांव और बरसाने के बीच स्थित है।
राधा अष्टमी को पूजा की विधि
- सूर्योदय से पहले उठें, स्नान करें और नए वस्त्र धारण करें।
- एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस श्री कृष्ण और राधा जी की प्रतिमा स्थापित करें। साथ ही कलश भी स्थापित करें।
- पंचामृत से स्नान कराएं, सुंदर वस्त्र पहनाकर का दोनों का श्रंगार करें। कलश पूजन के साथ राधा कृष्ण की पूजा भी करें। उन्हें फल-फूल और मिष्ठान अर्पित करें।
- राधा कृष्ण के मंत्रो का जाप करें, कथा सुने, राधा कृष्ण की आरती अवश्य गाएं।
श्रीराधाजी अष्टाक्षरी मंत्र

राधाजी को साक्षात माता लक्ष्मी स्वरूपा माना जाता है। इस अवसर पर हम धनवृद्धि के आसान से उपाय करके सुख समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं क्या हैं यह उपाय…
सुबह के स्नान के बाद राधाजी की पूजा करनी चाहिए और पूजा के बाद धनदायक अष्टाक्षर राधामंत्र का जप करना शुभ माना जाता है। यह मंत्र इस प्रकार है।
ऊँ ह्नीं राधिकायै नम:।
ऊँ ह्नीं श्रीराधायै स्वाहा।
यह देवी राधा का सिद्ध अष्टाक्षरी मंत्र है। शास्त्रों के अनुसार देवी राधा के इस आठ अक्षरों के मंत्र का जप राधाष्टमी से आरंभ करें। इस मंत्र की जप संख्या 16 लाख है। मंत्र जप पूर्ण होने पर खीर से हवन करें। कहते हैं कि यह सर्वसिद्धि कारक मंत्र है इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ग्रंथों में बताया गया है कि इस मंत्र का सवा लाख जप करने से धन संबंधी परेशानियों में फायदेमंद होता है।
राधा अष्टमी पर बीज मंत्रों से धन वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। राधाष्टमी के अवसर पर यक्ष-यक्षिणी की साधना करना बड़ा ही उत्तम माना गया है। इस मौके पर कुबेर सहित लक्ष्मी माता की साधना करनी चाहिए। राधाष्टमी से 16 दिनों तक एक समय भोजन करना चाहिए।
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अगर यह संभव न हो तो नमक का त्याग करना चाहिए। इसके साथ ही कुबेर और देवी लक्ष्मी के मंत्रों का जप करना चाहिए। देवी लक्ष्मी के बीज मंत्र ओम ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः।। का जप धन समृद्धिदायक कहा गया है।
राधा अष्टमी के मौके पर विशेष प्रकार का भोग लगाने से आपको कृपा प्राप्त होती है। राधा अष्टमी के मौके पर शहद, मिश्री सहित खीर बनाकर देवी राधा सहित भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाएं। ऐसा करने से आपको लक्ष्मी माता की कृपा प्राप्त होती है।
राधा अष्टमी के अवसर पर आपको देवी राधा के प्राकट्य की कथा का पाठ करना चाहिए। इस कथा का पाठ करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और आपके घर में सुख शांति स्थापित होती है।
जय श्रीराधेकृष्णा !!
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