आपने अक्सर सुना होगा कि लोग या मीडिया वाले किसी न किसी व्यक्ति को किसी पार्टी का चाणक्य बताते रहते हैं। आप भी सोचते होंगे कि आखिर ऐसा क्या है इन लोगों में जिससे इन्हे चाणक्य के बराबर रखा जाता है। सबसे पहले हम जानते हैं कि चाणक्य कौन थे। चाणक्य भारतवर्ष के महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरू और महामंत्री थे। वह राजनीती और कूटनीति के महान ज्ञाता थे। उनके बताए रास्ते पर चलकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध के राजा को हराकर मगध की सत्ता हासिल की थी। अपने शिष्य को मगध जैसे विशाल साम्राज्य का शासक बनवाने के बावजूद चाणक्य महल में न रहकर नगर के बाहर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। ये उनके त्याग को दर्शाता है।
आधुनिक समय में भी जो लोग इस कसौटी पर खरे उतरते है। जो लोग राजनीति और कूटनीति के तो माहिर होते ही हैं, साथ ही जरूरत पड़ने पर दूसरों के लिए त्याग की भावना भी रखते हैं उन्हे ही मीडिया दवारा चाणक्य की उपाधि दी जाती है। अगर हम सन 2000 से 2019 तक का समय देखें तो ऐसे कई राजनेता हुए जिन्होने अपनी पार्टी के लिए चाणक्य की भूमिका निभाई थी। आज हम उन्ही में से 4 ऐसे राजनेताओं के बारे में बताएंगे जो जरूरत के समय अपनी पार्टी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हमेशा तैयार रहे हैं।
भारतीय राजनीति के चाणक्य
4) डी के शिवकुमार (DK Shivkumar)
इस लिस्ट में हमने चौथे नम्बर पर रखा है डी के शिवकुमार को। कर्नाटक के कनकपुरा विधानसभा से कांग्रेस विधायक डीके शिवकुमार का पूरा नाम डोडालहल्ली केम्पेगौड़ा शिवकुमार है। गोल्ड और हीरे के शौकीन शिवकुमार कांग्रेस पार्टी के सबसे चहेते नेता हैं। अपने प्रशंसकों के बीच में डीके के नाम से प्रसिद्ध शिवकुमार पहली बार तब चर्चा में आए थे जब उन्होने 2002 में महाराष्ट्र की विलासराव देशमुख वाली कांग्रेस सरकार को गिरने से बचाया था।
इसके बाद 2017 में भी गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के विधायको को अपने रिजॉर्ट में रख कर अहमद पटेल जीत में अहम भूमिका निभाई थी। अपने दूरदर्शी स्वभाव के कारण राजनीतिक चालें चलने में माहिर डीके काग्रेंस के लिए मुश्किल समय में संकटमोचक की भूमिका भी निभाते रहे हैं। हालांकि डीके शिवकुमार का सपना कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनना भी है लेकिन पार्टी हित में उन्होने अपनी इस इच्छा का कई बार बलिदान भी दिया है।
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3) रामगोपाल यादव (Ramgopal Yadav)
रामगोपाल यादव को ज्यादातर लोग समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई के तौर पर जानते हैं। हमेशा सादगी भरा जीवन बिताने वाले रामगोपाल यादव ने हमेशा पार्टी के अंदरूनी काम-काज में बड़ी भूमिका निभाई है। पिछले दो दशकों से ज़्यादा समय से भी राजनीति में होने के बावजूद उन्होने कभी भी मंत्रिपद की मांग नहीं की। चुनाव जीतने के लिए या पार्टी को मजबूत करने के लिए बनाई गई उनकी रणनीति हमेशा ही कारगर सिद्ध हुई है।
यही कारण है कि मुलायम सिंह यादव ने कुछ वर्षों पहले एक इंटरव्यू में बताया था कि संसद में छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी बहस पर बोलने से पहले वो प्रोफ़ेसर रामगोपाल से मशवरा ज़रूर करते हैं। वो अपनी पार्टी के प्रति कितने वफादार हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होने 2012 में सपा को मिली तगड़ी जीत के बाद खुद के बारे में न सोचते हुए मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आवाज उठाया था।
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2) अहमद पटेल (Ahmed Patel)
इस लिस्ट में दूसरे नम्बर पर हैं अहमद पटेल। गुजरात से राज्यसभा सांसद अहमद पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का सबसे करीबी माना जाता है। राजनीतिक गलियारों में ये भी चर्चा होती है कि सोनिया गांधी, अहमद पटेल से सलाह लिए बिना कोई बड़ा फैसला नहीं करती हैं। 2004 से 2014 तक यूपीए-एक और यूपीए-दो की सरकार को 10 सालों तक चलाने में अहमद पटेल का अहम योगदान रहा है।
सीपीएम द्वारा यूपीए से समर्थन वापस लेने के बाद अहमद पटेल ने सरकार बचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्ही की कोशिश का नतीजा भी था कि 2009 में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बावजूद कांग्रेस पार्टी यूपीए की सरकार बनाने में कामयाब रही थी। हमेशा पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले अहमद पटेल ने कभी भी यूपीए सरकार के दौरान केन्द्र में मंत्रीपद की मांग नहीं की जो यह दर्शाता है कि उन्हे अपने से ज्यादा पार्टी की चिंता थी।
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1) अमित शाह (Amit Shah)
वर्तमान में भारत के गृहमंत्री श्री अमित शाह को बीजेपी का चाणक्य कहा जाता है। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद जब पार्टी के अन्दर मतभेद शुरू हो गए थे तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे श्री नरेन्द्र मोदी के कहने पर अमित शाह को उत्तर प्रदेश का बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था। जैसा कि हम सभी जानते हैं केन्द्र में सरकार बनाने के लिए उत्तर प्रदेश की बहुत ही अहम भूमिका होती है।
इसलिए एक सोची समझी रणनीति के तहत अमित शाह ने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली और बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं से संवाद बनाया जिसका नतीजा ये रहा कि पहली बार बीजेपी अपने दम पर बहुमत में आई। बाद में जब अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तब भाजपा ने देश के 21 से ज्यादा राज्यों में अपनी सरकार बनाई थी।
हालांकि इस दौरान उन पर कई राज्यों में विधायकों की खरीद-फरोख्त के भी आरोप लगे लेकिन राजनीति में साम, दाम, दंड और भेद इन चारों नीति को सही माना जाता है और जिस भी पार्टी को मौका मिलता है वो ये दांव जरूर आजमाती है। 2019 में बीजेपी की अभूतपूर्व जीत ने राजनीति के गलियारों में अमित शाह की एक बार फिर से मंझे हुए रणनीतिकार के तौर पर स्थापित कर दिया है।
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