जब भी बिहार में चुनाव की बात चलेगी तो 2005 के विधानसभा चुनाव को जरुर याद किया जाएगा। ये सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिए जाना जानेवाला चुनाव नहीं था। इस चुनाव को सबसे साफ-सुथरे चुनाव के बारे में भी याद किया जाता है। एक समय था जब बिहार में लालू यादव को सत्ता से उखाड़ फेंकना सपना लगता था। लोगों ने तो ये भी मान लिया था कि अब कोई भी उन्हे इस जंगलराज से मुक्ति नहीं दिला सकता है।
लेकिन 2005 का विधानसभा चुनाव वो चुनाव था जिसने लालू के जिन्न को बोतल से बाहर निकलने ही नहीं दिया। ये वो चुनाव था जिसने बूथ लुटेरों को भीगी बिल्ली बना दिया, वो बूथ के नजदीक तो क्या डर के मारे घर से बाहर तक नहीं निकले। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हुआ था इस चुनाव में। आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि लालू राज में बड़े-बड़े आईएएस आधिकारियों को खुलेआम जान से मारने की धमकी देने वाले गुंडे-बदमाश एक दुबले-पतले से आईएएस से डर गए थे।
इस चुनाव का हीरो किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं था बल्कि वो था जिसे सियासत से कोई मतलब नहीं था। इस शख्स ने बिहार ही नहीं पूरे देश को दिखाया कि चुनाव आयोग की ताकत क्या होती है। अब आप सोच रहे होंगे कि ये जरूर कोई शक्तिमान जैसा कोई सुपरहीरो होगा तो नहीं जनाब वो शक्तिमान जैसा तो नहीं था लेकिन बिहार के लोगों के लिए किसी सुपरहीरो से कम भी नहीं था। आइए जानते हैं उस शख्स के बारे में।
जानिए 2005 बिहार विधानसभा चुनाव के हीरो के बारे में
2005 में अक्टूबर चुनाव से ठीक पहले पटना में अफसरों के साथ चुनाव आयोग ने एक बैठक बुलाई। इस बैठक में बिहार पुलिस और प्रशासन के आला अफसरों के साथ एक शख्स भी मौजूद था। क्लीन शेव्ड, धारीदार शर्ट, दुबली-पतली शख्सियत और चश्मा पहने इस शख्स को बिहार पुलिस के कुछ अफसर कोई खास तवज्जो देने के मूड में नहीं थे।
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अचानक उस शख्स ने सामने पड़ा एक कागज उठाया जो उसकी टीम ने तैयार किया था। अब उसने पटना जिले के एक थानेदार का नाम पुकारा और पूछा- ‘व्हाट इज द स्टेटस ऑफ एनबीडब्ल्यू (नॉन बेलेबल वॉरंटी)’। दारोगा जी के मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली क्योंकि दिशानिर्देशों के मुताबिक उन्होंने अपने थाने के उन असामाजिक तत्वों को अंदर किया ही नहीं था जिनपर चुनाव में गड़बड़ी फैलाने की आशंका थी।
बस क्या था पतले-दुबले से चश्मा पहने उस शख्स ने पटना के उस दारोगा को खड़े-खड़े सस्पेंड कर दिया। फौलादी इरादों वाला वो शख्स और कोई नहीं बल्कि चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक के जे राव थे। राव ने उसी दिन साफ कर दिया कि 2005 बिहार विधानसभा चुनाव में बूथ लुटेरों की नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ कायदे-कानून की चलेगी। जो मानेगा वो टिकेगा, जो नहीं मानेगा वो राव की आंधी में उड़ जाएगा।
क्यों दिया जाता है के जे राव को श्रेय
अब सवाल ये उठता है कि बिहार में 2005 के फ्री एंड फेयर इलेक्शन का श्रेय के जे राव को ही क्यों दिया जाता है। इसके लिए आपको एक उदाहरण से समझना होगा जो उन दिनों मीडिया की सुर्खियां बन गया था। गया जिले में राजद के कद्दावर नेता और बाहुबली विधायक सुरेंद्र यादव के बारे में चुनाव से ठीक एक दिन पहले टेकारी थाने को खबर मिली की वो गरीब-गुरबों के बीच वोटिंग कराने के लिए फर्जी लाल कार्ड बांट रहे हैं।
के जे राव को ये अंदेशा था कि रसूख के चलते शायद राज्य की पुलिस के हाथ कांप जाएं। लिहाजा उन्होंने सभी संवेदनशील थानों में अर्धसैनिक बलों की तैनाती करवा दी थी। खबर मिलते ही पैरा मिलिट्री फोर्स की एक टीम मौके पर पहुंची और सुरेंद्र यादव को थाने ले आई। पहले तो उन्होंने पैरामिलिट्री फोर्स को भी बिहार पुलिस जैसा समझ कर खूब हेकड़ी दिखाई लेकिन अर्धसैनिक बलों ने जब उनके साथ सख्ती की तो उनकी सारी हेकड़ी निकल गई। उसके बाद उनका जो हाल हुआ वो सबने टीवी पर देखा।
राव के नाम से थर-थर कांपते थे बूथ लुटेरे
चुनाव के दिन हर एक बूथ पर अर्धसैनिक बल तैनात थे। इसके अलाव बूथ की छत पर एक जवान LMG यानि लाइट मशीनगन लिए तैनात था। उसकी उंगलियाँ ट्रिगर पर थी, यानि किसी भी आपात हालत में फायरिंग के लिए तैयार। ऐसा लग रहा था कि उसकी ड्यूटी बूथ पर नहीं बल्कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर लगी है।
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जब इस बारे में एक प्राइवेट न्यूज चैनल के पत्रकार ने कुछ लोगों से पूछा कि भाई इससे कुछ फर्क पड़ा। लोगों ने कहा कि ‘ई बार त बूथ लुटेरवन डरे झांकियों न मारे आइतौ, गोली खाएला हई का’… ये थी चुनाव आयोग की ताकत और खासतौर पर के जे राव की वो रणनीति जिसने बूथ लूट के लिए बदनाम बिहार की छवि एक चुनाव में बदल डाली।
छपरा में हुई थी के जे राव के नाम की जय-जयकार
के जे राव ने बिहार को किस दलदल से निकाला था इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चुनाव के दौरान जब के जे राव हेलीकॉप्टर से दौरे पर निकले थे और जैसे ही उनका हेलीकॉप्टर छपरा में लैंड हुआ। स्थानीय लोगों ने हेलीपैड के पास के जे राव जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए।
के जे राव के लिए ये सबसे बड़ा पल था, लोगों की नजर में वो एक ऐसे अफसर साबित हुए थे जिसने असंभव को संभव कर दिखाया था। हालांकि किस्से तो कई हैं लेकिन बिहार विधानसभा 2005 के चुनाव से जुड़े इन किस्सों में जो शख्स महानायक बनकर उभरा वो सिर्फ और सिर्फ राव ही थे।
चुनाव के बाद rediff.com ने बिहारटाइम्स डॉट कॉम के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें एक सर्वे किया गया था। इस सर्वे में लोगों को आधा दर्जन हस्तियों में से एक को बिहार में परिवर्तन के लिए हीरो चुनना था। सर्वे में नीतीश कुमार को पछाड़े हुए केजे राव हीरो नंबर वन बने।
केजे राव को 62 फीसदी लोगों का वोट मिला जबकि नीतीश कुमार को 29 फीसदी लोगों ने हीरो चुना। बिहारटाइम्स डॉट कॉम के तत्कालीन सीईओ अजय कुमार ने कहा था, ”केजे राव इस साल बिहार के हीरो नंबर वन हैं, क्योंकि उन्होंने सूबे में पहली बार शांतिपूर्वक और निष्पक्ष चुनाव कराने में सफलता प्राप्त की है।”
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