आजकल हर किसी के पास स्मार्टफोन है और उसमे बिल्कुल स्पष्ट फोटो खींच सकने वाले कैमरे भी लगे होते हैं जिससे हम मनचाहे फोटो भी खींच लेते हैं। जब भी हमे किसी कैमरे की क्षमता बतानी होती है तो हम मेगापिक्सल में बताते हैं जैसे 13 मेगापिक्सल, 16 मेगापिक्सल इत्यादि। हमारी आँखे भी कैमरे की तरह हीं होती हैं जो अपने आस-पास हर चीज को देख सकती हैं और उनकी तस्वीर बना सकती हैं।
आँखों और कैमरे में एकमात्र फर्क ये है कि कैमरे से खींची गई फोटो हम दूसरे व्यक्ति को दिखा भी सकते हैं। ये तो थी कैमरे की बात लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी आँखों की क्षमता क्या है? अगर हम कैमरे की तर्ज पर अपने आँखों की क्षमता मापे तो हमारी आँखें कितनी मेगापिक्सल की होंगी? कभी सोचा है आपने इस बारे में?
आँखों की क्षमता (मेगापिक्सल में)
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हमारी आँखे सिर्फ 1.5-2.0 मेगापिक्सल के कैमरे के बराबर हीं है। लेकिन अगर देखने की बात की जाए तो सामान्य प्रकाश में हमारी देखने की क्षमता 74 मेगापिक्सल होती है। और हमारी रेज़ोलुशन क्षमता 576 मेगापिक्सल के समान होती है।
इसका सीधा सा मतलब हुआ कि आपकी आँखों की क्षमता एक स्मार्टफोन के कैमरे से भी कम है। लेकिन हमारे देखने की क्षमता अधिक होने के कारण हम बिल्कुल स्पष्ट देख सकते हैं। हमारी ये लाइनें पढकर आप सोच में पड़ गए होंगे कि हम ये क्या लिख रहे हैं। इसलिए इस बारे में विस्तार से जानने के लिए आइये जरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस पूरे मामले को देखते हैं।
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दरअसल हम किसी भी इमेज को 3डी के तौर पर देखते हैं। आधुनिक विज्ञान के शोध के अनुसार, हम जो कुछ भी देखते है उसमे 85%-90% योगदान हमारे मस्तिष्क का शेष हमारी आँखों का होता है। जब हम किसी त्रिआयामी छवि को देखते है तो दृक तांत्रिक सभी संवेदी सूचनाएं हमारी मस्तिष्क को भेज देती है।
चूँकि हमारी नेत्र की क्षमता (1.5-2.0 MP) कम है इसलिए इन सूचनाओं से जो छवि का निर्माण होता है उसमें लाखो-करोड़ो काले धब्बे (blind spots) होते है हमारा मस्तिष्क इन सारे ब्लाइंड स्पॉट को भर देता है और हमारे समक्ष एक स्पष्ट 3D छवि प्रस्तुत कर देता है। दिमाग इस कार्य को करने में बहुत ही सूक्ष्म समय लेता है जबकि सुपर कंप्यूटर भी इस कार्य को इतने कम समय से इतनी कुशलता से नही कर सकता।
अगर सच कहा जाए तो किसी कैमरा और मानव नेत्र दृष्टि (vision) की तुलना मेगापिक्सेल मे सटीक रूप से नही की जा सकती क्योंकि हमारे नेत्र की दृष्टि किसी कैमरे की तरह डिजिटल नही होती और तो और हम अपने विज़न का एक मामूली हिस्सा ही साफ-साफ देख पाते है। इस तथ्य को आप सरल प्रयोग से साबित कर सकते है।
उदाहरण
एक काम कीजिए। अपना हाथ सामने की ओर करके अपना अंगूठा आँखो के सामने रख अपना फोकस बिलकुल अंगूठा पर रखिये। अब अपने किसी मित्र से कहिये कोई अख़बार आपके अंगूठे के दाएं तरफ 6इंच की दुरी पर लेकर खड़ा रहे। तो क्या?? बिना अंगूठे से ध्यान हटाये आप अख़बार में क्या लिखा है बता सकते है? नही न?
आपको अखबार तो दिख रहा होगा लेकिन अखबार के अक्षर नहीं। इसका कारण मानव नेत्र के लिए पूर्ण दृष्टिक्षेत्र (total field of view) मे से केवल 2°क्षेत्र पर ही फोकस करना संभव है अर्थात आपके अंगूठे के साइज के बराबर।
इंसान की दोनों आँखें मिलकर जो चारों ओर के दृश्य की समग्र छवि मस्तिष्क में पहुँचाती है वो कुल मिलाकर एक बहुत बड़े क्षेत्र की छवि बनाता है जो लगभग 576 मेगापिक्सल के बराबर होता हैं। असल में 576MP जबाव तब सही हो सकता है जब मानव नेत्र किसी कैमरा के स्नैप शॉट की तरह तस्वीर के हर कोण को साफ-साफ देख सके पर ऐसा संभव ही नही।
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