गांधार प्रदेश की राजकुमारी गांधारी, दुर्योधन सहित 100 कौरवों की माता थी और धृतराष्ट्र की पत्नी थी। धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के राजा थे जो कि अंधे थे। गांधारी पतिव्रता और तेजस्वी नारी थी इसी कारण उसने अपने अंधे पति के सम्मान में आजीवन आँखों पर पट्टी बाँधे रखने की शपथ ली हुई थी। यही कारण है कि उन्होने भी अपनी आंखों पर भी पट्टी बांध ली थी।
महाभारत युद्ध में जब पांडवों की विजय हुई तो अपने सभी पुत्रों के वध से क्रोधित गंधारी का मन पांडवों से प्रतिशोध लेने के लिए व्याकुल हो रहा था। लेकिन अपने शांत स्वभाव के कारण वह अपने क्रोध को बाहर लाना नहीं चाहती थी। विजय के पश्चात पांडव, धृतराष्ट्र और गांधारी से मिलने आए और उनके साथ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी थे। जब यह बात मालूम गांधारी को पता चला कि पांडवों के साथ श्रीकृष्ण भी आए हैं तो वह गुस्से से आग बबूला हो गई।
वह श्रीकृष्ण के पास गई और उनसे कहने लगी कि आप तो स्वयं श्री विष्णु जी के अवतार हो, आप चाहते तो यह नरसंहार को रोक सकते थे। लेकिन युद्ध रोकने के बजाए युद्ध में पांडवों का नेतृत्व किया। आपने जो किया है वह किसी पाप से कम नहीं। आप युद्ध का परिणाम पहले से हीं जानते थे लेकिन फिर भी आपने युद्ध रोकने की कोशिश नही की। जाकर अपनी माता देवकी से पूछो कि पुत्र को खोने का दुख क्या होता है।
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गांधारी कि यह बात सुनकर श्रीकृष्ण जी जोर-जोर से हंसने लगे। श्रीकृष्ण के ऐसे व्यवहार को देखकर गांधारी को और भी ज्यादा गुस्सा आ गया और इस घटना ने आग में घी के समान कार्य किया। गांधारी ने क्रोध में आकर भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दे दिया। उन्होने कहा कि अगर मैंने सच्चे मन से भगवान शंकर की पूजा और अपने पति की सेवा की है तो यह मेरा श्राप है कि “जिस तरह मेरे जीते जी मेरा कुल समाप्त हुआ है उसी तरह तुम्हारे ही सामने तुम्हारा भी कुल समाप्त हो जाएगा।”
श्राप देने के बाद गांधारी को पश्चाताप होने लगा कि उसने बहुत बड़ा पाप कर दिया है, जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं मैंने उनको हीं ऐसा भयंकर श्राप दे दिया है। भगवान श्रीकृष्ण जी मुस्कुराए और कहने लगी माता मुझे आपका यह श्राप स्वीकार है और यह कहकर वे द्वारका चले गए। इसी श्राप के
कारण सभी यदुवंशी आपस में हीं लड़ मरे और संपूर्ण द्वारका नगरी जलमग्न हो गई थी और उनके सारे कुल का सर्वनाश हो गया था।
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